BA Semester-3 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :160
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2652
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 संस्कृत नाटक एवं व्याकरण

प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है

अथवा
शाकुन्तल नाटक की नायिका के चरित्र चित्रण की मीमांसा कीजिए।

उत्तर -

काव्य में औचित्य का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। काव्य का यह औचित्य वस्तु नेता तथा रस पर निर्भर करता है। वस्तु और रस दोनों मिलकर किसी नायक या नायिका को लेकर काव्य के द्वारा रसिकों को आन्दानुभूति कराते हैं। अतः चतुर कवि को पात्रों को चरित्र चित्रण में अत्यधिक जागरूकता रखनी पड़ती है। रससिद्ध एवं कलाप्रवीण कवि की विशेषता होती है कि वह अपने पात्रों को अत्यन्त सजीव, सशक्त एवं मानवोचित्त गुणों से परिपूर्ण यथार्थता एवं आदर्शता से संगुम्फित तथा रमणीय रूप में प्रस्तुत करता है। चरित्र चित्रण के संबंध में पाश्चात्य विद्वान् एम. एल. राबिन्स का दृष्टिकोण अवलोकनीय है -

"चरित्र-चित्रण से आशय यह है कि किसी कथा के पात्रों का अङ्कन इस प्रकार किया जाये, इस स्वाभाविकता के साथ किया जाये, कि वे निर्जीव पुस्तक पृष्ठों के परे मूर्त होकर जीवन्त वैयक्तिकता ग्रहण कर लें।'

शकुन्तला "अभिज्ञानशाकुन्तलम्" की नायिका है। वह राजर्षि विश्वामित्र और मेनका अप्सरा की पुत्री है। जनम काल से ही माता-पिता से पिरत्यक्त की गई शकुन्तला का पालन-पोषण कण्व ऋषि ने किया है। यद्यपि वह कण्व की पालिता पुत्री है, तथापि उसे अपने प्राणों के समान प्रिय समझते हैं, जैसाकि नाटक के तृतीय अङ्क के विष्कम्भकन में मुनि शिष्यों द्वारा कहा भी गया है -

"सः खलु भगवतः कण्वस्य कुलपतेरुच्छवसितम्।" उसके चरित्र में निम्नलिखित विशेषतायें दृष्टिगोचर होती हैं -

अनुपम सौन्दर्य - अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रथम अङ्क में हमें शकुन्तला अपनी सखियों के साथ वृक्ष संचन करती हुई दिखाई देती है। वह लगभग 16-17 वर्ष की कन्या है। जिसमें अभी-अभी यौवन के लक्षण दृष्टिगोचर हो रहे हैं। अप्सरा की पुत्री होने के कारण उसका सौन्दर्य अनुपम है। उसे देखते ही दुष्यन्त के मुख से सहसा प्रस्फुटित होता है "अहो मधुरमासां दर्शनम्। शुद्धान्तदुर्लभमिदं व पुराश्रमवासिनो यदि जनस्य" दूरीकृता खलु गुर्णरुद्यानलतावनलताभिः। जन्मवृत्त ज्ञात होने पर वह स्वीकार करता है कि मृत्युलोक में किसी भी स्त्री में ऐसा सौन्दर्य कहाँ से हो सकता है -

मानषीसु कथं वा स्यादस्यरूपस्य सम्भवः।
न प्रभातरलं ज्योतिरुदेति वसुधातलात्॥

कौमार्य सौन्दर्य तथ लावण्य पर मुग्ध होकर दुष्यन्त उसे "अनाघ्रातपुष्प, अलूनकिसलय, अनाविद्ध रत्न, अनास्वादित मधु तथा अखण्ड पुण्यों का फल कहता है। उसके सहज सौन्दर्य को प्रस्फुटित करने के लिए किसी कृत्रिम प्रसाधन की आवश्यकता नहीं है। वह वल्कल पहने हुए अत्यधिक सुन्दर प्रतीत होती है। दुष्यन्त के ही शब्दों में -

इयमधिकमनोज्ञा वल्कनेनापि तन्वी,
किमिव हि मधुराणां मण्डनं नाकृतीनाम्॥

यौवन के प्रभाव से शकुन्तला के अङ्गों में असाधारण लावण्य उत्पन्न हो गया है। कवि ने दुष्यन्त के माध्यम से उसका वर्णन इस प्रकार किया है -

अधरः किसलयरागः कोमलविटपानुकारिणौ बाहू।
कुसुममिव लोभनीयं यौवनमंगेषु संनद्धम्॥

ऐसे अभिज्ञानशाकुन्तलम् का आद्योपान्त अध्ययन कर लेने से हमें शकुन्तला चरित्र में सर्वत्र सुशीलता के ही दर्शन होते हैं। तपोवन की कन्या होने के कारण पवित्रता एवं निश्छलता जैसे सद्गुणों को ग्रहण किया है। युवती होने पर भी कामविकार से सर्वथा रहित थी। राजा को देखकर उसके हृदय में प्रथम बार काम का विकार उत्पन्न होता है जिसको भी तपोवन के आचरण के विरुद्ध समझती है, (किं नु खल्विममं जनं प्रेक्ष्य तपो वनविरोधिनो विकारस्य गमनीयास्मि संवृत्ता।) परन्तु अपने इस भाव को लज्जावश वह अपनी अन्तरंग सखियों से भी नहीं प्रकट करती। वह काम व्यथा से पीड़ित होने के कारण दुर्बल हो गयी है, फिर भी अपने मन की व्यथा को मन में ही छिपाये हुए है। सखियों के बार-बार अनुरोध करने पर वह अपने मनोभावों को व्यक्त करने का साहस कर पाती है, परन्तु राजा के सहसा प्रकट हो जाने पर वह लज्जा के कारण धरती में गड़ सी जाती है। राजा द्वारा प्रणयानुरोध करने पर भी वह लज्जावश तथा अपने पिता की अनुमति के बिना आत्मसमर्पण के लिए उद्यत नहीं होती अपितु वह राजा के द्वारा आलिङ्गन किये जाने पर सकुचाती हुई कहती है "पौरव रक्षविनयम्। मदनसंतप्तापि न खल्वात्मनः। लज्जावश वह अपने गान्धर्व विवाह का वृत्तान्त किसी भी आश्रमवासी को नहीं बताती। उसके पिता को तो अग्निशरण में प्रवेश करते समय छन्दोपयी वाणी से उसके विवाह वृत्तान्त को जानकारी हुई थी। दुष्यन्त की राज्यसभा में वह अवगुण्ठनवती होकर ही जाती है और लज्जावश राजा से अपना प्रणय निवेदन भी कर पाती। प्रत्याख्यान के अवसर पर गौतमी द्वारा आदिष्ट होकर ही वह थोड़े से शब्दों में राजा को अतीत का स्मरण करती है किन्तु राजा द्वारा तथ तपस्वियों द्वारा तिरस्कृत हो जाने पर वह अनाथ की तरह फूट-फूट कर रुदन करती है। इस तरह प्रत्याख्यान के समय भी वह अपनी गरिमा और शालीनता को नहीं छोड़ पाती। सप्तम अङ्क में दुष्यन्त से भेंट होने पर उसे असीम आनन्द की उपलब्धि होती है परन्तु पति के साथ भगवान् मारीच के पास जाने में वह लज्जा का अनुभव करती है (जिह्वेमि आर्यपुत्रेण सह गुरुसमीपं गन्तुम।) इस प्रकार कालिदास ने शकुन्तला को सर्वत्र एक सुशील एवं लज्जाशील नारी के रूप में चित्रित किया है।

निष्ठायुक्त प्रेमिका - मुग्धा तपस्विकन्या शकुन्तला जिस दिन दुष्यन्त को देखकर आश्रम विरोधी काम विकार से युक्त हुई उसी दिन से दुष्यन्त की प्रेममयी मूर्ति हृदय में अंकित हो गयी और मन पर स्वयं का संयम समाप्त हो गया। भोली-भाली तपस्वी कन्या प्रणयविदग्धा नायिका बन जाती है। अपने मन- मोहन के पुनः दर्शन की उत्कण्ठा में वह प्रतिदिन क्षीणकाय होती जा रही है। सखियों द्वारा बारम्बार पूछे जाने पर वह मात्र इतना कहती है "सखि ! यतः प्रभृति मम दर्शनपथमागतः स तपोवनरक्षिता राजर्षिः तत् एवारम्य तद्गतेनाभिलाषणैतदवस्थास्मि संवृत्ता। तद् यदि वामानुतं तथा वर्तेथां यथा राजर्षेरनुकम्पनीया भवामि। अन्यथा सिञ्चित में तिलोदकम्। और उसका यह कथन ही उसके अनन्य प्रेम का परिचायक है। गान्धर्व विधि से विवाह कर राजा दुष्यन्त के हस्तिनापुर चले जाने पर शकुन्तला तद्गत चिन्ता में ही निमग्न रहती है और इस चिन्ता में उसे अपने शरीर की भी सुधि - बुधि नहीं रहती।

विद्या तथा कलाओं में निपुणता - कण्व ऋषि के आश्रम में रहकर शकुन्तला ने स्त्रियोचित शिक्षा भी प्राप्त की है। वह पशु-पालन, बागवानी तथा अतिथि सत्कार एवं गृहव्यवस्था में पूर्ण दक्ष है। उसकी दक्षता में विश्वास पर ही कुलपति कण्व आश्रम की व्यवस्था का भार अपनी पुत्री को सौंप सोमतीर्थ चले गये थे। वह साक्षर तथा काव्य रचना में प्रवीण है। उसने अपने हाथों से ही दुष्यन्त के लिये मदनलेख लिखा था जिसमें विरहजनित उत्कण्ठा, अभिलाषा, उपालम्भ आदि की सुन्दर व्यंजना हुई है

तव न जाने हृदयं मम पुनः कामों दिवापि रात्रावपि।
निर्धणतपतिबलीयस्त्वयिवृत्तमनोरथान्यङ्गानि॥

इससे स्पष्ट होता है कि शकुन्तला एक शिक्षित एवं कलाप्रवीणा तापसबाला है।

प्रकृति कन्या शकुन्तला - शकुन्तला को प्रकृति पुत्री के रूप में ही प्रस्तुत किया है। उसका पालन-पोषण प्रकृति के सुरम्य एवं सुविस्तृत प्रांगण में हुआ है, जिससे उसके हृदय में उदारता, सहृदयता और सदाशयता प्रभृति सात्विक गुणों का सहज विकास हुआ है। आश्रम के वनस्पतियों के प्रति उसका सादर स्नेह है - “अस्ति में सोदरस्नेह तेषु वृक्षों का सिंचन करती हुई शकुन्तला को केसर वृक्ष अपनी ओर बुलाता सा प्रतीत होता है। उसी के शब्दों में, "वातेरेरितपल्लावङ्ग लीभिस्त्वरयतीव मां केसरवृक्षकः " वनज्योत्स्ना नामक लता को वह अपने प्राणों से भी अधिक स्नेह करती है और पतिगृह गमन करने से पूर्व वह उससे आलिंगन करती है। तपोवन के प्रति उसके स्नेह की पराकष्ठा कण्व ऋषि के इस कथन से ही स्पष्ट हो जाती है कि वह पहले उनको जल पिला कर स्वयं जल पीती थी। आभूषण प्रिय हाने पर भी वृक्षों की पत्तियाँ नहीं तोड़ती थी और उनके प्रथम कुसुमप्रसूति समय पर उत्सव मनाती थी -

"पातुं न प्रथमं व्यावस्यति जलं युष्मास्वणीतेषुया
नादत्ते प्रियमण्डनापि भवतां स्नेहेन या पल्लवम्।
आद्ये वः कुसुमप्रसूतिसमये यस्या भवत्यु त्सवः
" सेयं याति शकुन्तला पतिगृहं सर्वैरनुज्ञायताम्।।

आश्रम से विदा होते समय शकुन्तला को वनस्पतियाँ नाना प्रकार के उपहार प्रदान करती हैं। इस समय आश्रम के मृग और लतायें शकुन्तला को पतिगृह जाते देखकर रुदन करते हैं। इस प्रकार कालिदांस की शकुन्तला प्रकृति की गोद में पली बढ़ी, प्रकृति का एक अभिन्न अंग प्रतीत होती हैं।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि महाकवि कालिदास ने शकुन्तला के उदात्त एवं प्रशस्य स्वरूप का सुन्दर चित्र प्रस्तुत किया है। वह वास्तव में स्नेह, लज्जा एवं लावण्य की सजीव मूर्ति है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- भास का काल निर्धारण कीजिये।
  2. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  4. प्रश्न- अश्वघोष के जीवन परिचय का वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- अश्वघोष के व्यक्तित्व एवं शास्त्रीय ज्ञान की विवेचना कीजिए।
  6. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष की कृतियों का उल्लेख कीजिए।
  7. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के काव्य की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  8. प्रश्न- महाकवि भवभूति का परिचय लिखिए।
  9. प्रश्न- महाकवि भवभूति की नाट्य कला की समीक्षा कीजिए।
  10. प्रश्न- "कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते" इस कथन की विस्तृत विवेचना कीजिए।
  11. प्रश्न- महाकवि भट्ट नारायण का परिचय देकर वेणी संहार नाटक की समीक्षा कीजिए।
  12. प्रश्न- भट्टनारायण की नाट्यशास्त्रीय समीक्षा कीजिए।
  13. प्रश्न- भट्टनारायण की शैली पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
  14. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त के जीवन काल की विस्तृत समीक्षा कीजिए।
  15. प्रश्न- महाकवि भास के नाटकों के नाम बताइए।
  16. प्रश्न- भास को अग्नि का मित्र क्यों कहते हैं?
  17. प्रश्न- 'भासो हास:' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  18. प्रश्न- भास संस्कृत में प्रथम एकांकी नाटक लेखक हैं?
  19. प्रश्न- क्या भास ने 'पताका-स्थानक' का सुन्दर प्रयोग किया है?
  20. प्रश्न- भास के द्वारा रचित नाटकों में, रचनाकार के रूप में क्या मतभेद है?
  21. प्रश्न- महाकवि अश्वघोष के चित्रण में पुण्य का निरूपण कीजिए।
  22. प्रश्न- अश्वघोष की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- अश्वघोष के स्थितिकाल की विवेचना कीजिए।
  24. प्रश्न- अश्वघोष महावैयाकरण थे - उनके काव्य के आधार पर सिद्ध कीजिए।
  25. प्रश्न- 'अश्वघोष की रचनाओं में काव्य और दर्शन का समन्वय है' इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  26. प्रश्न- 'कारुण्यं भवभूतिरेव तनुते' इस कथन का क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- भवभूति की रचनाओं के नाम बताइए।
  28. प्रश्न- भवभूति का सबसे प्रिय छन्द कौन-सा है?
  29. प्रश्न- उत्तररामचरित के रचयिता का नाम भवभूति क्यों पड़ा?
  30. प्रश्न- 'उत्तरेरामचरिते भवभूतिर्विशिष्यते' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  31. प्रश्न- महाकवि भवभूति के प्रकृति-चित्रण पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  32. प्रश्न- वेणीसंहार नाटक के रचयिता कौन हैं?
  33. प्रश्न- भट्टनारायण कृत वेणीसंहार नाटक का प्रमुख रस कौन-सा है?
  34. प्रश्न- क्या अभिनय की दृष्टि से वेणीसंहार सफल नाटक है?
  35. प्रश्न- भट्टनारायण की जाति एवं पाण्डित्य पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
  36. प्रश्न- भट्टनारायण एवं वेणीसंहार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  37. प्रश्न- महाकवि विशाखदत्त का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  38. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का रचयिता कौन है?
  39. प्रश्न- विखाखदत्त के नाटक का नाम 'मुद्राराक्षस' क्यों पड़ा?
  40. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटक का नायक कौन है?
  41. प्रश्न- 'मुद्राराक्षस' नाटकीय विधान की दृष्टि से सफल है या नहीं?
  42. प्रश्न- मुद्राराक्षस में कुल कितने अंक हैं?
  43. प्रश्न- निम्नलिखित पद्यों का सप्रसंग हिन्दी अनुवाद कीजिए तथा टिप्पणी लिखिए -
  44. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  45. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए।
  46. प्रश्न- "वैदर्भी कालिदास की रसपेशलता का प्राण है।' इस कथन से आप कहाँ तक सहमत हैं?
  47. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के नाम का स्पष्टीकरण करते हुए उसकी सार्थकता सिद्ध कीजिए।
  48. प्रश्न- 'उपमा कालिदासस्य की सर्थकता सिद्ध कीजिए।
  49. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् को लक्ष्यकर महाकवि कालिदास की शैली का निरूपण कीजिए।
  50. प्रश्न- महाकवि कालिदास के स्थितिकाल पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के नाम की व्युत्पत्ति बतलाइये।
  52. प्रश्न- 'वैदर्भी रीति सन्दर्भे कालिदासो विशिष्यते। इस कथन की दृष्टि से कालिदास के रचना वैशिष्टय पर प्रकाश डालिए।
  53. अध्याय - 3 अभिज्ञानशाकुन्तलम (अंक 3 से 4) अनुवाद तथा टिप्पणी
  54. प्रश्न- निम्नलिखित श्लोकों की सप्रसंग - संस्कृत व्याख्या कीजिए -
  55. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तियों की व्याख्या कीजिए -
  56. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम्' नाटक के प्रधान नायक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  57. प्रश्न- शकुन्तला के चरित्र-चित्रण में महाकवि ने अपनी कल्पना शक्ति का सदुपयोग किया है
  58. प्रश्न- प्रियम्वदा और अनसूया के चरित्र की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए।
  59. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् में चित्रित विदूषक का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  60. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् की मूलकथा वस्तु के स्रोत पर प्रकाश डालते हुए उसमें कवि के द्वारा किये गये परिवर्तनों की समीक्षा कीजिए।
  61. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के प्रधान रस की सोदाहरण मीमांसा कीजिए।
  62. प्रश्न- महाकवि कालिदास के प्रकृति चित्रण की समीक्षा शाकुन्तलम् के आलोक में कीजिए।
  63. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् के चतुर्थ अंक की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- शकुन्तला के सौन्दर्य का निरूपण कीजिए।
  65. प्रश्न- अभिज्ञानशाकुन्तलम् का कथासार लिखिए।
  66. प्रश्न- 'काव्येषु नाटकं रम्यं तत्र रम्या शकुन्तला' इस उक्ति के अनुसार 'अभिज्ञानशाकुन्तलम्' की रम्यता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
  67. अध्याय - 4 स्वप्नवासवदत्तम् (प्रथम अंक) अनुवाद एवं व्याख्या भाग
  68. प्रश्न- भाषा का काल निर्धारण कीजिये।
  69. प्रश्न- नाटक किसे कहते हैं? विस्तारपूर्वक बताइये।
  70. प्रश्न- नाटकों की उत्पत्ति एवं विकास क्रम पर टिप्पणी लिखिये।
  71. प्रश्न- भास की नाट्य कला पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- 'स्वप्नवासवदत्तम्' नाटक की साहित्यिक समीक्षा कीजिए।
  73. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर भास की भाषा शैली का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के अनुसार प्रकृति का वर्णन कीजिए।
  75. प्रश्न- महाराज उद्यन का चरित्र चित्रण कीजिए।
  76. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् नाटक की नायिका कौन है?
  77. प्रश्न- राजा उदयन किस कोटि के नायक हैं?
  78. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के आधार पर पद्मावती की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  79. प्रश्न- भास की नाट्य कृतियों का उल्लेख कीजिये।
  80. प्रश्न- स्वप्नवासवदत्तम् के प्रथम अंक का सार संक्षेप में लिखिए।
  81. प्रश्न- यौगन्धरायण का वासवदत्ता को उदयन से छिपाने का क्या कारण था? स्पष्ट कीजिए।
  82. प्रश्न- 'काले-काले छिद्यन्ते रुह्यते च' उक्ति की समीक्षा कीजिए।
  83. प्रश्न- "दुःख न्यासस्य रक्षणम्" का क्या तात्पर्य है?
  84. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए : -
  85. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिये (रूपसिद्धि सामान्य परिचय अजन्तप्रकरण) -
  86. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिये।
  87. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (अजन्तप्रकरण - स्त्रीलिङ्ग - रमा, सर्वा, मति। नपुंसकलिङ्ग - ज्ञान, वारि।)
  88. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  89. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्त प्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - I - पुल्लिंग इदम् राजन्, तद्, अस्मद्, युष्मद्, किम् )।
  90. प्रश्न- निम्नलिखित रूपों की सिद्धि कीजिए -
  91. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूपसिद्धि कीजिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित सूत्रों की व्याख्या कीजिए (हलन्तप्रकरण (लघुसिद्धान्तकौमुदी) - II - स्त्रीलिंग - किम्, अप्, इदम्) ।
  93. प्रश्न- निम्नलिखित पदों की रूप सिद्धि कीजिए - (पहले किम् की रूपमाला रखें)

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